भगवान की पूजा-पाठ में मन नहीं लगता तो जाने कारण और उपाय

                

                             आप सभी को राधे राधे 
आइए जानते हैं कि मन भगवान की पूजा पाठ में क्या नहीं लगता है 
 मानव जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक सुख-सुविधाएँ जुटाना नहीं है, बल्कि परमात्मा की शरण लेकर आत्मिक शांति पाना है। इसके लिए पूजा-पाठ, जप, ध्यान और भक्ति सबसे श्रेष्ठ मार्ग बताए गए हैं। परंतु वास्तविकता यह है कि बहुत से लोग कहते हैं – “पूजा में मन नहीं लगता, ध्यान बार-बार भटक जाता है।”

यह समस्या नई नहीं है। महाभारत के समय अर्जुन ने भी यही प्रश्न भगवान श्रीकृष्ण से पूछा था। इसलिए हतोत्साहित होने की आवश्यकता नहीं है। यदि हम कारणों को समझ लें और सही उपाय अपनाएँ, तो मन स्वतः पूजा और साधना में रमने लगता है।


पूजा-पाठ में मन न लगने के कारण


1. मन का चंचल स्वभाव

मन वायु के समान अस्थिर है। श्रीकृष्ण कहते हैं – “चंचलं हि मनः कृष्ण”। यह स्वभाव से ही इधर-उधर भटकता है, इसलिए किसी एक बिंदु पर टिकाना कठिन लगता है।

2. बाहरी आकर्षण

आज का युग भौतिक साधनों से भरा हुआ है। मोबाइल, टीवी, सोशल मीडिया और मनोरंजन पूजा में सबसे बड़ी बाधा हैं। जैसे ही पूजा में बैठते हैं, मन उसी ओर भागता है।

3. आलस्य और थकान

अनियमित जीवनशैली, देर रात तक जागना, असंतुलित भोजन और तनाव मन को थका देता है। ऐसे में पूजा के समय आलस्य घेर लेता है।

4. श्रद्धा और भक्ति का अभाव

यदि पूजा केवल औपचारिकता या दिखावे के लिए हो, तो मन नहीं लगेगा। सच्ची श्रद्धा और भावनाओं से रहित पूजा सूखी और नीरस प्रतीत होती है।

5. अपवित्र आहार और संगति

तामसिक भोजन (मांस, शराब, नशा आदि) और नकारात्मक संगति मन को भारी और अस्थिर कर देती है। सात्त्विक जीवन के बिना भक्ति में मन टिकना कठिन है।

6. अभ्यास की कमी

मन को साधना भी अभ्यास मांगती है। यदि आप नियमित रूप से जप या ध्यान का अभ्यास नहीं करते, तो स्वाभाविक है कि मन पूजा में नहीं टिकेगा।

पूजा-पाठ में मन लगाने के उपाय


1. छोटे कदम से शुरुआत

आरंभ में 5-10 मिनट ही भगवान के नाम का स्मरण करें। धीरे-धीरे इसे बढ़ाएँ। मन धीरे-धीरे स्थिर होना सीख जाएगा।

2. समय और स्थान निश्चित करें

प्रत्येक दिन निश्चित समय पर और एक ही स्थान पर पूजा करने का नियम बनाइए। मन को आदत पड़ जाएगी और वह स्वतः केंद्रित होने लगेगा।

3. वातावरण को पवित्र बनाइए

स्वच्छ स्थान, दीपक, अगरबत्ती, फूल और मंत्रों की ध्वनि वातावरण को दिव्य बना देती है। मन स्वयं आकर्षित होता है।

4. भक्ति संगीत का सहारा लें

अगर सीधे ध्यान कठिन लगे तो भजन, कीर्तन या मंत्र-चालन से शुरुआत करें। संगीत मन को खींचता है और भक्तिभाव जगाता है।

5. मंत्रजप और श्वास नियंत्रण

सरल उपाय है – श्वास के साथ मंत्र का जप। जैसे श्वास अंदर लेते समय “राम”, बाहर छोड़ते समय “राम”। यह विधि ध्यान को स्थिर करती है।

6. सात्त्विक आहार और संगति

फल, दूध, ताजा भोजन और सकारात्मक मित्रता मन को शुद्ध करती है। साथ ही धार्मिक ग्रंथ पढ़ना और संतों की संगति करना लाभदायक है।

7. कृतज्ञता और प्रेम से पूजा करें

भगवान को कर्तव्यवश नहीं, बल्कि आभार स्वरूप पूजा करें। सोचें – “आज जो भी मिला, प्रभु की कृपा है।” यह भावना पूजा को आनंदमय बना देती है।

8. ध्यान साधना का अभ्यास

आँखें बंद करके भगवान का स्वरूप या मंत्र मन में धारण करें। आरंभ में कुछ ही मिनट बैठें, धीरे-धीरे ध्यान गहरा होगा।

9. निरंतरता रखें

कुछ दिनों में मन न भी लगे, तब भी पूजा छोड़ें नहीं। निरंतरता ही सफलता का मार्ग है।

10. प्रार्थना करें

अंतिम और सबसे सरल उपाय है – भगवान से सच्ची प्रार्थना करें:
“हे प्रभु, मेरा मन चंचल है। कृपा करके इसे अपने चरणों में स्थिर कर दीजिए।

श्री तुलसीदास जी ने लिखा है 


उन्होंने लिखा – “सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखहिं रामू॥”। हनुमान जी का नाम लेने से राम जी स्वयं मन को अपने वश में कर लेते हैं।

अर्जुन और गीता


अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि मन को वश में करना कठिन है। तब कृष्ण बोले – “अभ्यास और वैराग्य से मन को जीता जा सकता है।”

आधुनिक जीवन


आज लोग कहते हैं कि समय नहीं मिलता। परंतु यदि रोज सुबह केवल 10 मिनट ईश्वर को समर्पित करें, तो वही समय जीवन का सबसे सुखद पल बन जाएगा।


जब पूजा में मन लगने लगे, तब के लाभ


1. आत्मिक शांति और गहरा संतोष

2. तनाव, चिंता और क्रोध से मुक्ति

3. सकारात्मक ऊर्जा और उत्साह

4. प्रेम, करुणा और धैर्य की वृद्धि

5. हर कार्य में सफलता और सरलता

7. ईश्वर के साथ गहरा संबंध

8. हमेशा आनंद की अनभूति होना 



पूजा-पाठ में मन न लगना कोई बड़ी समस्या नहीं, बल्कि साधना का प्रारंभिक चरण है। मन स्वभाव से चंचल है, परंतु नियम, सात्त्विक आहार, अभ्यास और प्रेम से वह धीरे-धीरे भगवान के चरणों में स्थिर हो जाता है।

याद रखिए – भक्ति एक बीज के समान है। उसे धैर्य और निरंतरता से सींचते रहिए। एक दिन यही बीज वृक्ष बनकर आत्मिक आनंद और शांति के फल देगा।


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